राजनीति का लोमहर्षक दुर्लभ विकार
1.
संजीदा विषयों पर बहस को टालने की भौंडी परंपरा डाली
2.
बर्खास्त विधायकों को बहाल करने का प्रस्ताव पास
3.
भ्रष्टाचार पर लाए स्थगन प्रस्ताव पर बहस को भूले दोनों दल
4.
सरकार नहीं दे पायी हाईकोर्ट को स्पष्टीकरण
5. चुनाव आयोग के सामने भी किरकिरी
रूकमणि....रूकमणि पर्दे के पीछे क्या-क्या हुआ....किसने देखा.....किसने नहीं देखा।......यहां
तो सबने देखा। पिछले दिनों किस तरह मध्यप्रदेश विधान सभा में राजनीति एक माखौल
बनी। 19 जुलाई 2012 को पहले कांग्रेस के दो विधायकों चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी
और डॉक्टर कल्पना परूलेकर को बर्खास्त कर दिया गया। फिर दूसरे ही दिन से उनकी
बहाली के पुरजोर प्रयास होने लगे। इसमें अचरज भी कैसा ? कलह और द्वेष भरी इस दुनिया में लोकतंत्र सबसे गैर जिम्मेदाराना शासन प्रणाली
है। आज के दौर में लोकतंत्र की जगह जोकतंत्र ने ले ली है। जिसका तरोताजा और नायाब
उदाहरण मध्यप्रदेश विधान सभा में घटित ये प्रकरण है। जिसने विद्वानों के इस मत को
भी पुख्ता किया है कि संसदीय बहस सबसे नीरस और समय बर्बाद करने वाली होती है।
जिनका तथ्यों और जन भावनाओं पर आधारित बहस से कोई सरोकार नहीं होता। इनका एकमात्र उद्देश्य
अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधना होता है। हमारी विधायिकाएं अपनी कार्यवाही का
तीन-चौथाई समय गैर-प्रासंगिक और स्तरहीन बहस में ही गवा देती हैं। इस प्रकार वे
जनता के धन और समय को बर्बाद करने का साधन बनती जा रही हैं।
मध्यप्रदेश विधान
सभा में मानसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष ने भ्रष्टाचार और प्रदेश में चल रहे खनिज
के अवैध उत्खनन पर बहस की मांग की। विषय बहस के लिए उतना भी गैर प्रासंगिक नहीं
था। जितना उसे सत्ताधारी दल बी.जे.पी. ने बताया। सरसरी तौर पर तर्क दिया गया इन
विषयों पर अभी केंद्रीय जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं। इस नाते राज्य विधान सभा
में इन मुद्दों पर बहस नहीं की जा सकती। कांग्रेस का स्थगन प्रस्ताव स्वीकार नहीं
होने पर उसने स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी के कक्ष के सामने धरना दिया। कांग्रेस विधायक
दल पर स्पीकर को बंदी बनाने और हुड़दग्ग मचाने का आरोप लगा। सत्ताधारी दल ने भी
कांग्रेस के विरोध की परवाह नहीं की। प्रोटोकॉल में सूचिबध्द सभापति ज्ञान सिंह के
जरिये विधान सभा की कार्रवाई जारी रखी। इतने में कांग्रेस विधायक दल के विधायक
आसंदी के पास जाकर स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा कराने की मांग को लेकर हंगामा करने
लगें। उन पर सभापति से खींचतान और अभद्र व्यवहार का आरोप लगा। सत्ताधारी दल ने
सभापति के अनुसूचित जन जाति से होने के नाते इसे भी भुनाने का प्रयास किया। इसे
आदिवासियों के प्रति कांग्रेस की मानसिकता का परिचायक बताया। बी.जे.पी. ने इस दिन
को मध्यप्रदेश विधान सभा में सबसे शर्मसार करने वाला काला दिन बताने में थोड़ी देर
नहीं की। आम लोग तो उस समय सोच में पड़ गए जब दूसरे दिन समाचार पत्रों में स्पीकर
रोहाणी का ये बयान पढ़ा कि उन्हें किसी ने बंदी नहीं बनाया। लोगों ने ये सोचकर
अपना माथा पकड़ अपने आप को शांत किया कि आजकल राजनीति पर ध्यान देना अपना समय
बर्बाद करने से और ज्यादा कुछ नहीं हैं।
सत्ताधारी दल बीजेपी ने बिना देर-सबेर किए बिना। अगले ही दिन कांग्रेस
विधायक दल के दो विधायकों को निलंबित ही नहीं सीधे-सीधे बर्खास्त करने का प्रस्ताव
ध्वनिमत से पास कर दिया। विधान सभा से निष्कासित किए इन विधायकों की बर्खास्तगी की
सूचना। बिना देर किए भारत निर्वाचन आयोग को दे दी। निर्वाचन आयोग ने तुरंत इन
दोनों विधायकों की सीटों को रिक्त घोषित कर दिया। 19 जुलाई 2012 को हुए राष्ट्रपति
चुनाव में ये विधायक वोट नहीं डाल पाए। आम जनता तो उस समय इस राजनीतिक नाटक से
चकरघन्नी बनकर रह गयी। जब 24 घंटे के भीतर ही बी.जे.पी. अपने इस कदम से ग्लानि से
भर आयी। वो अति उत्साह में उठाये अपने इस कदम को मिटाने के लिए। दोनों विधायकों की
बहाली के रास्ते तलाशने लगी। बी.जे.पी. में रातो-रात कांग्रेस के प्रति अपनत्व जाग
गया। लेकिन अब ये मामला विधान सभा के आपे से भी बाहर हो गया था। निर्वाचन आयोग ने
विधान सभा की सूचना पर इन दोनों विधायकों के स्थानों को रिक्त घोषित कर दिया था। बीजेपी-कांग्रेस
दोनों पश्चाताप की अग्नि में जलकर बहाली के रास्ते तलाशने में लग गए।
बुध्दिजीवियों को तो राजनीति में ये अपनी तरह का पहला और दुर्लभ मामला लगने लगा।
बी.जे.पी. अपने बचाव के लिए ये सब करने से नहीं हिचकिचायी।
उसे आभास होने लगा कि उसका ये कदम कांग्रेस को फायदा पहुंचाने वाला हो सकता है। भारतीय
जनता पार्टी को अपना ये कदम आत्मघाती लगने लगा। बिखरी प्रदेश कांग्रेस को आंदोलन
खड़ा करने में नाकाम रहने का डर सताने लगा। वह भी बहाली के प्रयास में शामिल हो
गयी। दोनों विधायकों ने पार्टी गाइड लाइन की परवाह नहीं की। गल्ती मान अपने
व्यवहार पर लिखत में खेद जताया। कांग्रेस उपचुनावों का सोचकर हिम्मत हार गयी। दोनों रिक्त सीटों पर उपचुनावों
में सत्ताधारी दल से कांग्रेस की हार होने पर। अगले साल होने वाले विधानसभा के
चुनावों में उसे अधिक हानि होगी। कांग्रेस को लगने लगा। वह अपने इन दोनों दबंग और
जमीनी नेताओं को विधान सभा से ही न खो दें। दूसरी ओर बीजेपी बहस के संवेदनशील विषय
को जनता के मस्तिष्क पटल से हटाना चाहती है। वह कांग्रेस को साधने में सफल रही।
इस लोमहर्षक राजनीतिक घटना को देख आम लोगों में निराशा का
संचार हुआ हैं। अब लोग इस उत्तर को तलाशने में लग गए हैं। क्या संजीदा विषयों पर
बहस को टालने की ये भौंडी परंपरा पड़ जायेगी। लंबे समय तक एक छत्र राज करने वाली
कांग्रेस के तो अनेक रूप देश ने देखे हैं। अब चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने
वाली बी.जे.पी. भी जनमानस में चिंता के बीज बोने का काम कर रही है। राजनीत के
पर्दे पर उसके नित नये-नये बेहरूपिया अवतार सामने आ रहे है। बहाली का कोई रास्ता
नहीं सूझने के बावजूद ये नेता हिम्मत नहीं हारे। उम्मीद करने लगें। कांग्रेस
द्वारा हाईकोर्ट में लगाई गयी याचिका पर फैसला आने के बाद वे इस पाप को धो लेंगे। हाईकोर्ट
विधान सभा को अपने सदस्यों की बर्खास्तगी पर पुनर्विचार के लिए कहेंगी। बस यहीं से
दोनों दलों के नेता बर्खास्त विधायकों की बहाली का रास्ता खोज लेंगे। बर्खास्त
विधायकों की बहाली का प्रस्ताव विधान सभा में पास कर लेंगे। दोनों दल अपने-अपने
राजनीतिक हितों को साध लेंगे। जनता का क्या ? वो तो इसे धीरे-धीरे अपनी याददाश्त से विस्मृत कर देंगी।
बर्खास्त विधायकों द्वारा हाईकोर्ट में दायर स्थगन याचिका
पर 23 जुलाई को होने वाली सुनवाई टाल दी गई । मध्यप्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के
सामने अपना पक्ष रखने ही नहीं गई। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 26 जुलाई को तय की। 26
जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख 7 अगस्त को मुकर्रर की गई है। इसके पहले ही बीजेपी
सरकार ने उतावलापन दिखाकर 27 जुलाई को विधान सभा का विशेष सत्र बुलाकर दोनों
विधायकों की बहाली का प्रस्ताव पास कर दिया। अब गेंद भारत निर्वाचन आयोग के पाले
में हैं। वह इन दोनों विधायकों की सीटें जो रिक्त घोषित की जा चुकी हैं उन्हें पुन: भरी हुयी घोषित करता है या नहीं। सत्ता वाले तो विधान सभा
को असीमित अधिकार हैं बताकर पूरी तरह अपने आप में आश्वस्त हैं। वहीं विधान सभा का
विशेष सत्र बुलाने पर रोक लगाने की दूसरी याचिका भी उच्च न्यायालय के सामने है।
इसकी सुनवाई 30 जुलाई को होनी हैं। याचिका में कहा गया है कि केवल जनहित विषय के मामलें
पर ही विधायिका का विशेष सत्र बुलाया जा सकता है। बर्खास्त विधयाकों की बहाली के
लिए विधान सभा का विशेष सत्र बुलाना संविधान सम्मत नहीं है। विधायकों की
बर्खास्तगी और बहाली के लिए नेताओं ने गुमराह करने वाली प्रक्रिया अपनायी हैं। इस
दौरान जनता में व्यवस्था के प्रति अविश्वास की भावना उभरी हैं। इन्हीं जन भावनाओं
को ध्यान में रख न्यायालय और चुनाव आयोग विधान
सभा में पारित प्रस्ताव को रद्द या नामंजूर कर नेताओं को उनका नैतिक दायरा बता
सकता है। और अगर ऐसा होता होता है तो संसदीय परंपरा में यह सबसे उजला दिन होगा।
जनता जनार्दन भी धन्य होगी। कुल मिलाकर विधान सभा ने बहाली का प्रस्ताव पास कर
दोनों विधायकों को गुब्बारें पर बिठा आकाश में छोड़ दिया हैं। कब गुब्बारे की हवा
निकल जाये और वे दोनों धड़ाम से नींचे गिर जाये कोई नहीं जानता। नेता 1978 में
इंदिरा गांधी की लोकसभा में हुई बहाली का उदाहरण दे रहे हैं। वे भूल गए कि इंदिरा
की बहाली पूरे देश से संबंधित एक संवेदनशील मुद्दा था। विधायकों की बहाली जैसा
हलकट नहीं। जिस प्रकार बीजेपी और कांग्रेस का गोलमाल और गुमराह करने वाला रंगबदलू
चेहरा सामने आया हैं। उससे प्रदेश ही नहीं पूरे देश में राजनीति पर थू-थू हो रही
हैं।
(ऊँ राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम् !) 27 जुलाई 2012
( लेखक एक सकारात्मक चिंतक है। )
http://aajtak.intoday.in/livetv.php
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