Morning Woke Time

Morning Woke Time
See Rising sun & Addopete Life Source of Energy.

Tuesday 15 January 2013

महान् स्वप्नदृष्टा और कर्मदूत विवेकानन्द


12 जनवरी 
राष्ट्रीय युवा दिवस, विवेकानन्द जयंती पर विशेष

बहुजन हिताय बहुजन सुखायमहापुरूष जन्म लेते हैं। उनका आविर्भाव समाज के हित के लिए होता है। वे समाज की रूढ़िवादी परंपरा का अनुसरण नहीं करते। अपितु वे समाज को बदल डालते हैं। विश्व वरेण्य वीर सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ऐतिहासिक पुरूष थे। जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव डाली।
विवेकानन्द हिन्दू धर्म और उसकी आध्यात्मिक भावना के प्रतीक थे। उनके उपदेश ने न केवल हिन्दू धर्म और समाज को शक्तिशाली बनाया। साथ ही भारतीय राष्ट्रीयता को भी मजबूत बनाया। उन्होंने हिंदू आध्यात्मवाद का पुनरूत्थान किया। ऐसा करते हुए इस्लाम और ईसाई धर्म पर हिंदू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित की। उन्होंने हिंदू धर्म और समाज की दुर्बलताओं को भी स्पष्ट किया। उन्होंने हिंदूओं को बताया। यदि वे वेदांत के बताये मार्ग पर चले तो वे अपने धर्म की आत्मा को समझ जाएंगें। और पुन: एक गौरवपूर्ण राष्ट्र का निर्माण करने में सफल होंगे। विवेकानंद जी ने हिंदू आध्यात्मवाद का उपदेश पश्चिमी जगत को भी दिया। इससे यूरोप में हिंदू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित हुई। इससे हिंदूओं में अपने धर्म और संस्कृति के प्रति विश्वास और आस्था जागृत हुई। इससे हिंदुत्व पुन: जागृत हो गया। इससे हिंदूत्व की उस दिशा में प्रगति संपन्न हुई जिसे बहन निवेदिता ने उग्र हिंदूत्व बताया।
विवेकानन्द धर्म को देवत्व मानते है। जो स्वत: ही मनुष्य में है। उनका उपदेश था। धर्म आत्म ज्ञान है। व्यक्ति को अपनी प्रकृति को अपने अधिकार में रखना चाहिए। वही निर्माण का मार्ग है। एक राष्ट्र की प्रगति का मापदंड उसकी आध्यात्मिक प्रगति भी है। इस कारण। उन्होंने प्रत्येक राष्ट्र और प्रत्येक व्यक्ति समूह को धर्म और आध्यात्म का पालन करने की सलाह दी। स्वामी विवेकानन्द व्यक्ति की भौतिक उन्नति में भी विश्वास करते थे। इस आधार पर वे पूर्व और पश्चिम में विचारों के आदान-प्रदान को आवश्यक मानते थे। उनका विश्वास था। भारत पश्चिमी संसार को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर सकता है। भारत पश्चिम से भौतिक उन्नति के तरीके सींख सकता है।


स्वामी विवेकानन्द सभी धर्मों की समानता के सिद्धांत को स्वीकार करते थे। इस कारण। सभी धर्मों के अनुयायियों को सहनशीलता, समानता और सहयोग का उपदेश दिया। उन्होंने कहा। एक-दूसरे से लड़ों मत, बल्कि एक-दूसरे की सहायता करों।आपस में सामंजस्य स्थापित करों। विनाश नहीं। शांति रखों। उन्होंने कहा। विभिन्न धर्मों में अन्तर होना स्वाभाविक है। और आवश्यक भी। तुम सभी को समान विचार स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। यह सत्य है। मैं इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देता हूं। विचारों का अंतर और विचारों का संघर्ष ही नवीन विचारों को जन्म देता है।

उन्होंने धर्म का पालन करने के लिए। शिक्षा, स्त्रियों का उद्धार और गरीबी को समाप्त करना अत्यंत आवश्यक बताया। विवेकानंद जी ने मानव मात्र की सेवा करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य बताया। ईश्वर विभिन्न रूपों में तुम्हारें सामने है। जो ईश्वर के बच्चों को प्यार करता है। वह ईश्वर की सेवा करता है। ईश्वर की खोज में कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। सभी निर्धन, अज्ञानी, अशिक्षित और असहाय व्यक्ति की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। शिक्षित भारतीयों को उपदेश दिया। जब तक करोड़ों व्यक्ति भूखें और अशिक्षित हैं। तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को देश द्रोही मानता हूं। जो उसके ही धन से पढ़कर उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। मानव मात्र और समाज की सेवा करना स्वामी के उपदेशों का पहला उद्देश्य था। उनका विश्वास था। आध्यात्मिक प्रगति से मनुष्य को आत्मज्ञान होगा। और वह स्वत: ही समाज और राष्ट्रीय उत्थान में सहयोग देगा। वह मनुष्य को वास्तविक मानव बनाने में विश्वास करते थे। मनुष्य को सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र की उन्नति का आधार मानते थे।
स्वामी विवेकानंद ने भारत की राष्ट्रीय भावना के निर्माण में भाग लिया। हिंदू धर्म और आध्यात्म की श्रेष्ठता स्थापित होने से।  हिंदूओं में आत्म विश्वास, आत्म गौरव और देश भक्ति जागृत हुई। जिसने राष्ट्र निर्माण में सहायता दी। विवेकानंद ने जो प्रार्थना करना हिंदूओं को बताया था। उसका सारांश था। हे गौरी पति, हे विश्व की माता, मुझे मनुष्यत्व प्रदान करों। ये शक्ति की मां। मेरी दुर्बलताओं को नष्ट करों। मेरी नपुंसकता को नष्ट करो। मुझे एक मनुष्य बनाओ। इस प्रकार विवेकानंद को आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा जाता है। उन्होंने राष्ट्रीयता का निर्माण किया। उन्होंने राष्ट्रीयता के महान् तत्वों को अपने जीवन में शामिल किया। मात्र 39 वर्ष 5 माह की आयु में भारत के इस महान् स्वप्न दृष्टा और कर्मदूत ने चिर-समाधि प्राप्त की। इस अल्पकाल में ही विवेकानंद ने आधुनिक भारत की आधारशीला प्रतिष्ठित की।
विवेकानंद ने अपने देहांत से कुछ दिन पहले ही एक महत्वपूर्ण बात कही थी। यदि इस समय कोई दूसरा विवेकानंद होता। तो वह समझ सकता कि विवेकानंद ने क्या किया।
स्वामी विवेकानंद के उपदेशों और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और अंत्योदय दर्शन में अदभूत तालमेल दिखाई देता है। स्वामी जी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सकारात्मक सेक्यूलरवाद अर्थात सर्व धर्म समभाव के पक्षधर थे। विवेकानंद भी एक ऐसे भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध थे। जो सुदृढ़, समृद्ध स्वालंबी राष्ट्र हो। जिसका दृष्टिकोण आधुनिक, प्रगतिशील और प्रबुद्ध हो। और जो अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति और मूल्यों से सगर्व प्रेरणा ग्रहण करता हो। इस प्रकार एक महान विश्वशक्ति के रूप में उभरने में समर्थ हो। जो विश्व शांति और न्याययुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने के लिए। विश्व के राष्ट्रों में अपनी प्रभावशाली भूमिका का निर्वहण कर सकें। स्वामी जी के उपदेश आज भी हमारे लिए एक ऐसे लोकतंत्रीय राज्य की स्थापना करने। जिसमें जाति, संप्रदाय और लिंग का भेद किए बिना। सभी नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक न्याय, समान अवसर और धार्मिक विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शी है। विवेकानंद जी के उपदेश समाजवाद और पंथ निरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा और भारत की संप्रभुसत्ता, एकता और अखंडता को कायम रखने के लिए प्रेरक होंगे।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्।)
http://aajtak.intoday.in/livetv.php

No comments:

Post a Comment