सुशासन
सुशासन की परिकल्पना इस देश में हमेशा से रही है। यह विडम्बना है कि रामराज की विरासत वाले इस देश में अब सुशासन की बात दोहराने की नौबत आ गर्इ है। ऐसा, कुशासनों का दौर चलने के कारण हुआ है। अगर पुरानी समस्याओं के लिए एक हजार वर्षों की गुलामी जिम्मेदार है, तो आजादी के 70 वर्षों में हम कहां से कहां पहुँचे? काले पानी से इटली?
सुशासन संबंधी कोर्इ सर्वस्वीकृत
कसौटी प्रस्तुत करना सरल कार्य नहीं है। जो मापदंड कार्यपालन के गुणों को नापने के
लिए अपनाए गए है वे समय, स्थान तथा
समुदाय के अनुसार अनिवार्यत: बदलते रहते है। सभी प्रभावशाली कार्यपालन को अच्छे शासन
की सच्ची कसौटी मानती है। बहुत से लोग इस प्रभावशीलता को उद्देश्यों की प्राप्ति
की सीमा के आधार पर रखने के आदी हो गए है। वे
मुख्यत: परिणामों में रूचि रखते है, किन्तु परिणाम तो मनुष्यों, द्रव्य तथा सामग्री को प्रचुर मात्रा
में व्यय करके तथा गलत तरीकों और अन्यायपूर्ण साधनों के प्रयोग द्वारा भी प्राप्त
किए जा सकते है। अत: साधनों की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। प्रशासन में विवेकी
व्यवहार प्रधानत: उन साधनों का उल्लेख मात्र है, जिनसे एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति की
पूर्ण आशा की जाती है। दक्षता 'शासन में
एकमात्र अंतिम मूल्य है।
दक्षता तथा व्यवस्था शासन के युगल संकेत है। संतोशजनक
सेवा, उत्तरदायी
कार्यसंचालन तथा अच्छी सरकार सुशासन की कसौटी के तीन मूल्य है। संतोशप्रद सेवा का अर्थ
है, उचित तथा
न्यायपूर्ण सेवा अर्थात शासन की ओर से सभी नागरिकों के प्रति समान व्यवहार होना
चाहिए, समय पर
सेवा अर्थात सेवा के प्रभावशाली होने के लिए उसे ठीक समय पर संपादित किया जाना
चाहिए, पर्याप्त
सेवा अर्थात उचित स्थान पर तथा उचित समय पर सेवा की उचित मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए, निरंतर सेवा अर्थात
वर्षा , हिमपात, आकाश या रात्रि के
अंधकार की बाधाओं के बावजूद संगठन को
कार्य करना चाहिए, और
प्रगतिषील सेवा अर्थात संगठन के कार्यो में उत्तमता तथा उसके कार्य संचालन में
निरंतर वृद्धि होती जाती हो। शासन के उत्तरदायी कार्य संचालन का अर्थ है कि शासन
उनके द्वारा संस्थागत तरीकों के माध्यम तथा सहयोग से शासकीय प्रयत्नों का नेतृत्व
करता है, जो
लोकतांत्रिक समाज की इच्छा को अभिव्यक्त करने के लिए विधमान है । प्लूटो तथा
अरस्तू के समय से ही 'सुशासन एक
उददेष्य माना जाता रहा है,
किन्तु
इतिहास में इसके भिन्न-भिन्न अर्थ किए गए है। सुशासन के तीन उददेष्य है- तकनीकि
रूप से कार्य संचालन को व्यवसिथत करना, राजनीतिक उत्तरदायित्व निश्चित करना एवं जनता को जो
स्वीकार्य हो तथा व्यावसायिक रूप से अनुमोदित तथा सामाजिक रूप से रचनात्मक हो , उसके अनुकूल कार्य
की व्यवस्था करना।
दरअसल शासन की गुणवत्ता ही यह सुनिश्चित करती है कि समाज में लोगों को अपना भौतिक, मानसिक, आर्थिक, राजनैतिक विकास कर सकने लायक माहौल मिलेगा या नहीं। इसी से यह भी तय होता है कि लोग अपनी क्षमतानुसार अवसर पा सकते हैं या नहीं। फिरंगियों से पिंड छूटने के मात्र पांच दषक बाद ही अगर हमें फिरंगियों के ही सवाल से फिर जूझना पड़ रहा है, तो जाहिर है कि इन पांच दषकों में हमारा राजनैतिक विकास पर्याप्त नहीं हो सका, या नहीं होने दिया गया।
शासन की गुणवत्ता हर व्यकित, हर परिवार, हर गांव, हर क्षेत्र और पूरे
देष-प्रदेश को प्रभावित करती है। सरकार, समाज और बाजार सकारात्मक और न्यायपूर्ण ढंग से चलें यह
तभी हो सकता है जब सरकार अपने वैध अधिकारों का समतावादी, एकसार, संवेदनशील और जनता
के प्रति जवाब देह ढंग से इस्तेमाल करें। वह दुष्टों के प्रति सख्त और मजबूरों के
प्रति उदार हो। विकास सबका हो और सभी उससे जुड़ सकें। जब शासन अच्छा होता, तो विकास, न्याय और समरसता प्रभावित
होती है। जब हम आजाद देश के आजाद नागरिक हैं, तो किसी से पीछे क्यों हैं?
अर्थव्यवस्था का अकुशल संचालन।
बहुसंख्यक लोगों का भोजन, पानी, बिजली और आवास से
वंचित होना।
जाति, समुदाय ओर लिंगभेद के आधारों पर भेदभाव
होना।
सरकारी तंत्र में संवेदनषीलता का
नितांत अभाव होना।
सरकारी संस्थानों से आम लोगों का
विष्वास समाप्त होना।
कायदे कानूनों का मनमर्जी ढंग से
इस्तेमाल होना।
पंचायती राज के नाम पर इतने षोर
षराबे के बावजूद बड़ी संख्या में गरीबों की कहीं सुनवार्इ न होना।
शहरों में वातावरण दिन पर दिन
बिगड़ता जाना यह सब इसी कुशासन के लक्षण हैं। इस देश का कोर्इ भी व्यकित इन
हालातों की मौजूदगी से इनकार नहीं कर सकता। क्या भारत के लोग इसी लायक है? यह भारत के गौरव का
सवाल हैं।
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