15 अगस्त 2015 पर विशेष
1. जन-गण-मन ..... की एक स्वर में प्रतिध्वनि हमारी मूल पहचान
2. एक निष्पक्ष – चिंता या चिंतन
3. हमेशा ऊंचा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा
4. देश की आन-बान-शान में जा देने को हम तैयार
5. गहरी होती कौंध से भरती जनता की आंखें
6. नजरों से ओझल होता निकट भविष्य
7. उथल – पुथल के इस युग में घबरातें लोग
8. अपने आने वाले दिनों की तस्वीर को साफ देखने लालायित देशवासी
9. इन हिलोरों के बाद कंचन बनकर उभरेगा देश
10. दुनिया की अंगुवाई करने हम तैयार
हर साल की तरह
फिर आज हम स्वतंत्रता दिवस की बेला में खड़े हैं। खुशी के साथ चिंतन और मनन को
लेकर आने वाले इस राष्ट्रीय पर्व को हम मनाने जा रहे हैं। 15 अगस्त की सुबह उत्साह और उमंग की ऊर्जा के साथ एक
बार फिर हम सब भारत के लोगों का एक स्वर में राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट .......... ! हर संकट की घड़ी में हम सभी एक, देश हर दम एक
साथ खड़ा – यहीं हम सबकी विशेषता। अच्छे विचारों को सामने लाने के लिए आंतरिक तौर
पर वैचारिक मत भिन्नता जरूरी …… ! इन सबके बावजूज सबसे पहले दुश्मन को मुंह तोड़
जवाब देने के लिए जवानों के साथ हम सब हर पल तैयार .... सजग ....... सतर्क ......
संवेदनशील ....... ।
स्वतंत्रता
दिवस याने हमारे उन पूर्वजों के संघर्षों की यादों को संजोने ...... याद करने
..... उनके बतायें रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा लेने का दिन ...... जिन्होंने 180
वर्षों के अपने अथक संघर्षों से हमें ये स्वतंत्रा दिलाई। उन घोर अमानवीय यातनाओं
के याद करने का दिन जो हमनें गुलामी के दौर में झेली हैं। ये यादें ही हमें बताती
हैं हमें गुलामी का महत्व। ये यादे ही हमें प्रेरित करती हैं मातृ भूमि पर अपने
प्राण न्यौछावर करने ...... संघर्ष करने ..... सतर्क रहने ...... दुश्मन को करारा
जवाब देने पुरजोर जज्बा देने के लिए।
आज हम 69 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्त किए 68 साल बित गएं। इस लंबे अर्से में भारत ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में अनेक ऊंचाईयों को छुआ हैं। भारत की मानसिक आयु ने भी अपना एक ऊंचा मुकाम हांसिल कर लिया हैं। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भारत का ये सिंहासन लगातर ऊंचा होता जा रहा है। अब हमारे बुजुर्गों ही नहीं, हमारे युवा और उनके पीछे आती किशोरों की पीढ़ी भी हमारी वैचारिक विरासत को अधिक याद करने की बजाय वो वर्तमान और भविष्य पर अधिक चिंतन करना चाहती हैं। पृष्ठ भूमि वाले आधारभूत विषय आज देश के हर तबके के नागरिक के दिल-दिमाग में लगभग स्पष्ट हैं। आज व्यक्ति मेजर की जगह तात्कालीक तौर पर उभरते और उसके हित वाले माइनर विषयों पर अधिक सोचने लगा हैं।
आज हम 69 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्त किए 68 साल बित गएं। इस लंबे अर्से में भारत ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में अनेक ऊंचाईयों को छुआ हैं। भारत की मानसिक आयु ने भी अपना एक ऊंचा मुकाम हांसिल कर लिया हैं। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भारत का ये सिंहासन लगातर ऊंचा होता जा रहा है। अब हमारे बुजुर्गों ही नहीं, हमारे युवा और उनके पीछे आती किशोरों की पीढ़ी भी हमारी वैचारिक विरासत को अधिक याद करने की बजाय वो वर्तमान और भविष्य पर अधिक चिंतन करना चाहती हैं। पृष्ठ भूमि वाले आधारभूत विषय आज देश के हर तबके के नागरिक के दिल-दिमाग में लगभग स्पष्ट हैं। आज व्यक्ति मेजर की जगह तात्कालीक तौर पर उभरते और उसके हित वाले माइनर विषयों पर अधिक सोचने लगा हैं।
परिपक्वता की
दहलीज पर पहुंच चुकी देश के मतदाताओं की मानसिक आयु व्यवस्था को ट्रैक पर लाने के
लिए लगातार आगे बढ़ रही हैं। जनता ने ही 2014 में लोकसभा के आम चुनावों में किसी
एक दल को स्पष्ट बहुमत देकर प्रजातंत्र को पूरा किया। जनता जनार्दन ही हैं जिसने
स्वतंत्रता के बाद पहली बार विपक्षी दल बीजेपी को अकेले आशा अधिक बहुमत देकर देश
को एक दलीय और वंशानुगत शासन व्यवस्था के श्राप से मुक्त किया है। 1990 के दशक से
जो राजनीति में उथल-पुथल (In a Time of Tarbulance)
का दौर शुरू हुआ। उसकी मजबूरी वश देश गठबंधन राजनीति की खाई में जा गिरा। विश्व
की दौड़ में शामिल होने के लिए इसी समय कांग्रेस के करकमलों से पूर्व प्रधान
मंत्री पी.वी. नरसिंहराव की अगुवाई में देश में शुरू हुआ आर्थिक ग्लोबलाइजेशन। जो
कभी पटरी से उतरता तो कभी कभी ट्रैक से पर दौड़ता नजर आया। तभी से आज भी आर्थिक
ग्लोबलाइजेशन भारत में अविरल रूप से लगातार ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा हैं।
ऐसे
विपरित समय में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक सफल खेवनहार की तरह
देश को गठबंधन की सफल राजनीति का पाठ पढ़ाकर देश को विपत्ती के महासागर से बाहर निकाल
लिया। अटल जी के बाद फिर देश ने गठबंधन सरकार के दो मौन कार्यकाल देंखें। पूरे 10
वर्षों तक उस पर वंशवाद का साया छाया रहा। फिर भी वो देश के लिए अतुलनीय रूप से
सफल रहा। उसने भले ही रेल तेज नहीं दौड़ायी लेकिन हमारी गाड़ी को ट्रैक से उतने
नहीं दिया। परिवर्तन के प्रारंभिक दौर में स्वभावत: अपने हित साधने वालों ने जरूर सेंध लगाई जिससे बदनामी भी
ज्यादा सामने उभरकर सामने आयी। इस दौरान विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने वंश
विशेष के साथ स्वतंत्र शासक के अदभूत समन्वय को देखा। भले ही मौन के बल पर समय आगे
बढ़ा हो। तथाकथित रूप से लगभग ही सही, मगर देश का वो विपरीत समय भी दुनियां की
मैराथन में शामिल रहते हुए, आगे निकलने के पुरजोर प्रयास के साथ, मौन देश के शासन
को इस विपत्ती के समय से बाहर निकाल ले आया।
अब 2014 के आम
चुनावों में जनता ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी को रिकॉर्ड बहुमत
देते हुए उस पर गुरूत्तर दायित्व डालकर भरोसा जताया हैं। जिन वादों को लेकर
वर्तमान सरकार अस्तित्व में आयी थी, उन्हें कारगर करने प्रतिध्वनि तो बहुत ऊंची
सुनाई दे रही हैं। यदि ये मधुर ध्वनि धरातल पर आयी तो हम दुनिया की अगुवाई करते
नजर आयेंगे। विश्व गुरू रहे भारत का सपना एक बार फिर होगा। आज संसार के सभी लोगों
की नजरें भारत के ऊपर हैं। प्लीज कम एण्ड मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल
इंडिया, विदेशों में जमा काले धन की पाई-पाई घर आने की आशा, प्रभावशाली बनने के
लिए आगे बढ़ती हमारी विदेश नीति, सरकारी कोष में जमा होने वाले धन का बढ़ता ग्राफ
और दहाड़ से घबरा रही महंगाई वाले हमारे साहसी बोल हमारे सुनहरे भविष्य की राह खोल
रहे हैं, कहे या खोल सकते हैं। अभी कहना मुमकिन नहीं। इन्हें भविष्य पर छोड़ने के
अलावा अभी कोई रास्ता नहीं। आम लोगों के लिए देश में महंगाई घबराने की बजाय टस से
मस न होकर अपने कदम आगे ही बढ़ा रही हैं।
भ्रष्टाचार ने तो लगता है व्यवस्था में सारे मूल्यों को ही निगल लिया हैं। घुस लेने वाले से ज्यादा देने वाला खुश हो रहा हैं। लेने वाला तो घबराता भी है लेकिन देने वाला केवल अपना हित चाहता है। उसे चाहिये कम खर्चें में बिना लंबी प्रक्रिया में पड़े शीघ्र काम। देने वाले की इस दोहरी मनोवृत्ती पर लगाम लगे बिना सरकार के लिए भ्रष्टाचार पर विजय हांसिल करना दुष्कर ही नहीं मगर कठिन अवश्य है। एक ओर व्यक्ति गलत कामों के सहारे ही सहीं, मगर हर हाल में आगे बढ़ना चाहता हैं। दूसरी ओर वो भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कोसता हैं। लगता है ये व्याधि तब तक दूर नहीं हो सकती जब तक समाज के हर लोगों में व्यक्तिगत तौर पर नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती हैं। हमें एक जुट होकर हर जगह बुराई का विरोध करना चाहिये। आवाज उठाना चाहिए। चाहे बुराई किसी भी रूप में हो। दिल्ली की आप सरकार सार्वजनिक स्थलों पर हो रही बुराई के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने की पहल के लिए आह्वान कर रही है। जिसे पूरे देश में आगे बढ़ना चाहिए। आज दिवस देखना चाहता है सभी एक दूसरे की अच्छी पहल का स्वागत करें, देश में समनव्य की संस्कृति हो।
भ्रष्टाचार ने तो लगता है व्यवस्था में सारे मूल्यों को ही निगल लिया हैं। घुस लेने वाले से ज्यादा देने वाला खुश हो रहा हैं। लेने वाला तो घबराता भी है लेकिन देने वाला केवल अपना हित चाहता है। उसे चाहिये कम खर्चें में बिना लंबी प्रक्रिया में पड़े शीघ्र काम। देने वाले की इस दोहरी मनोवृत्ती पर लगाम लगे बिना सरकार के लिए भ्रष्टाचार पर विजय हांसिल करना दुष्कर ही नहीं मगर कठिन अवश्य है। एक ओर व्यक्ति गलत कामों के सहारे ही सहीं, मगर हर हाल में आगे बढ़ना चाहता हैं। दूसरी ओर वो भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कोसता हैं। लगता है ये व्याधि तब तक दूर नहीं हो सकती जब तक समाज के हर लोगों में व्यक्तिगत तौर पर नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती हैं। हमें एक जुट होकर हर जगह बुराई का विरोध करना चाहिये। आवाज उठाना चाहिए। चाहे बुराई किसी भी रूप में हो। दिल्ली की आप सरकार सार्वजनिक स्थलों पर हो रही बुराई के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने की पहल के लिए आह्वान कर रही है। जिसे पूरे देश में आगे बढ़ना चाहिए। आज दिवस देखना चाहता है सभी एक दूसरे की अच्छी पहल का स्वागत करें, देश में समनव्य की संस्कृति हो।
इसमें दो राय
नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहले रोजगार की गारंटी को कानून में बदलकर देश
को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट दिया। इसके बाद देश को सूंचना
अधिकार अधिनियम आरटीआई देकर व्यवस्था को पारदर्शी बनाने वाला साहसी कदम उठाया। इसी
क्रम में देश के बच्चों के लिए शिक्षा के मूल अधिकार को कठोरता से क्रियान्वित
करने शिक्षा का अधिकार अधिनयम लाकर अमह कदम उठाया। अपनी स्थिति को भापकर आखिर में जाते-जाते
ही सही कांग्रेस देश को भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनिय और भारतीय लोकपाल अधिनियम दें
गईं। कांग्रेस लोक कल्याण के साथ-साथ हमारे प्रजातंत्र के लिए मील का पत्थर साबित
होने वाले इन कदमों का प्रभावी क्रियान्वयन आने वाली सरकार पर छोड़ गई। देश की
जनता अब बीजेपी से इन अहम विषयों को जमीन पर लाने के साथ-साथ कांग्रेस द्वारा उठाए
गये इन कदमों से भी बेहतर कानूनी प्रबंध की आशा कर रही हैं। आज नवीन सरकार को बने
एक साल से अधिक का समय गुजर गया, अभी देश केवल गूंज सुन रहा है। एक ओर देश अपने
आपको आत्मविश्वास से लबरेज महसूस कर रहा है, तो दूसरी ओर देश के लोग उठाये गयें
कदमों की आहट सुनने के सुनने के साथ-साथ, उसे महसूस करने के लिए बेसब्री से
लालायित हैं। लोकपाल बनाने के लिए अधिनियमित की गई एक साल की समय सीमा के चले जाने
के बाद भी देश को लोकपाल की नियुक्ति के लिए आवाज तक सुनाई नहीं आ रही है।
आज उसी
अण्णा हजारे को जिसे बीते एक समय आज का गांधी पुकारा जाने लगा था, उनकी लंबी-लंबी
चिठ्ठियों के जवाब एक लाइन में मिल रहे हैं। सचमुच उस समय गांधी के बाद कोई तो
मुखौटा आया जिसके साथ पूरा देश एक स्वर में खड़ा था। उनके एक आह्वान पर थोड़ी देर
के लिए शाम के समय सारे देश में एक साथ अंधेरा छा गया और मोमबत्तीयां जल उठी। बिना
भेद-भाव, ईर्ष्या-द्वैष, स्वैच्छा से हर तबकें, न कोई गरीब, न कोई अमीर सभी के
सामने एक ही निर्विवाद आवाज। जनता सड़कों पर उमड़ पड़ी। देश में पिन ड्राप
साइलेंस। सभी कर्ताधर्ता सन्न। क्या आरएसएस, बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी,
कम्यूनिष्ट या अन्य क्षेत्रीय दल हम सब उनके साथ। विडंबना ये धरोहर हम संजो नहीं
पायें। आगे नहीं बढ़ा पायें। महत्वाकांक्षाओं ने उसे तितर-बितर कर दिया। मानव
शांति के अस्तित्व के लिए खतरा बना आतंकवाद लगातार हमें चिड़ाने के प्रयास कर रहा
हैं। हमारी विदेश नीति की अधिकांश चर्चा पाकिस्तान के ही ईर्द-गिर्द घुम रही है। दूसरी
ओर लंबे समय से आतंकवाद की पीड़ा झेल रहे जम्मू एण्ड कश्मीर की सरकार में पीडीपी
और बीजेपी का बेमेल हमारे दिमाग के परे लगता है। पाक आतंकवादी हमारे निर्दोष लोगों
की जान लेने के लिए हर कभी हमारे देश में चले आते हैं। उन्हें हम जिन्दा पकड़े या
मुर्दा। पड़ोसी उसे अपने यहां के नागरिक होने से इंकार कर देता है। साक्ष्यों को
तो वो धता दिखाता हैं।
संसद हो या
विधान सभाएं हमारी विधायिकाएं प्रासंगिक बहस की जगह संख्या बल की राजनीति अधिक
करने लगी हैं। समय से पहले सत्रावसान होना। सदन को चलने से बाधित करना। विशेज्ञता
के इस युग में तकनीकी पर आधारित बहस की जगह राजनीतिक विषयों की बहस पर ही सदन का
समय गवा देना। राजनीति दलों में अतिशय अनुशासन की सीमा के चलते बड़े पैमाने पर
डम्प पार्लियामेंट, डम्प विधान सभाओं के बढ़ते अस्तित्व जैसे अनेक विषयों ने आम
लोगों को चिंता में डाल दिया हैं। सभी अपनी – अपनी बात उचित ठहराने में लगे हैं। जिन्होंने
मूल्य आधारित जनजीवन की बहतरी के लिए विपक्ष में रहकर लंबे समय तक संघर्ष किया वो
भी और जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद से आज तक सत्ता सुख भोगा वो भी। सभी एक ट्रैक
पर। प्रजातंत्र के पूरा होने पर आज भी हम वो ही देख रहे हैं, जो विगत 65 सालों से देखते आ रहे हैं।
चारों ओर सुषमा-वसुंधरा-शिवराज के नाम का हो हल्ला। जनता को सच्चाई कुछ सूझ नहीं रहीं। क्या विवादों में आयी किसी धरोहर को बचाना इतना जरूरी हैं। या किसी को जांच की भट्टी में तपाकर उसे कंचन बनाकर निकालना। कहीं वहीं तो नहीं हो रहा जो 65 सालों से कांग्रेस करती आयी। वो भी तब जब बीजेपी जैसा मूल्य आधारित राजनीतिक दल सत्ता में हैं। जनसंघ के काल से मूल्य आधारित राजनीतिक दल की दुहाई दे रहें बीजेपी में उसी कांग्रेस के कार्यकर्ता धड़ल्ले से आ रहे हैं। जिसके मूल्यों के विरोध में हमने संघर्ष किया। लगता है अब इस अवसरवादी विपरित प्रवाह ने चुनावी जीत को सर्वोपरी बना दिया हैं। मूल्य बीतें दिनों की बात बनकर रह गएं। गलत काम करने वाला एक व्यक्ति ललित मोदी विदेश में बैठकर निडरता से एक से बढ़कर एक आरोप सभी दलों के हमारे कर्ताधर्ताओं पर लगा रहा हैं। हमारी व्यवस्था की कमियों को उजागर कर स्वच्छ बनाने की चाह रखने वाले हमारे व्हीसिल ब्लोअर अपनी जान की सुरक्षा गारंटी की कमी के चलते बड़े पैमाने पर एक्टिव होकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। सरकार के लिए व्हीसिल ब्लोअर की सुरक्षा और उनके द्वारा होने वाले संभावित दुरूपयोग के बीच संतुलन बिठाना कठिन हो रहा हैं। देश इस पर सरकार के किसी कड़े कदम उठाने की आशा कर रहा है।
प्रजातंत्र में विपक्ष की भी उतनी ही अहम् भूमिका होती है, जितनी सत्ता पक्ष की। दृड़ इच्छा शक्तिशाली वाला विपक्ष सत्ता को विरोध के साहारे सतर्क-सजग रखकर प्रजातंत्र को पूरा करता है। स्वतंत्रता के बाद गांधी जी ने तो भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की सार्वभौम धरोहर को संजोकर रखने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक राजनीतिक दल बनाने का विरोध किया था। गांधी जी का कहना था भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ये विरासत भारत को युग-युग तक एकत्व के साथ संघर्ष करने की प्रेरणा देती रहेंगी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लंबे संघर्ष से मिली मूल्यों की ये दुर्लभ धरोहर कभी राजनीतक तौर पर भी लांछीत नहीं होगी। अनेकता में एकता रखने वाले भारत के हर नागरिक के लिए एक समान सम्मानीय, अनुकरणीय होगी। भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक राजनीतिक दल में बदलने के बाद भी गांधी जी ने कईं बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को समाप्त करने की बात उठाई थी। लेकिन अवसरवादियों के सामने गांधी जी की एक नहीं चली।
गांधी जी के इस दूरगामी विचार को बीजेपी ने अपने
प्रचार तंत्र के अंग में भी शामिल किया है। ऐसे में देश की राजधानी में आप के साथ
चल रही बीजेपी की खटपट की कैसे आशा की जा सकती है। देश के मूल्यों की अनदेखी से
रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस के विकल्प के तौर पर आप उभरने को बेताब हो रही है,
तो होने दिया जाय। दिल्ली में आप की विजय कोई हमारी पराजय न होकर लोकतंत्र में
मिलने वाले संकेत के समान हैं।
हाल ही में सरकार द्वारा कुछ अश्लील वेबसाइटों को
बंद करने और मुम्बई बम धमाकों के आरोपी को फांसी देने के बाद कवरेज करने वाले कुछ
टी.वी. चैनलों को नोटिस दिए जाने के कारण हमारा विरोध गलत हैं। अश्लील वेबसाइटों
को बैन कर सरकार ने ऐसा क्या गलत कर दिया। इससे हमारे बच्चें और संस्कृति दोनों ही
सुरक्षित हुए हैं। वहीं सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ने की संभावना के चलते संवेदनशील
कवरेज बैन होने से तो कोई अनचाही अनहोनी ही निर्मूल हुई है। ऐसी सकारात्मक सोच ही
हैं जो हमारे देश को ऊंचाईयों पर ले जायेंगी। हम सीना फुलाकर गर्व से कह सकेंगे हम
हैं भारतवासी ........... ! एक साथ सारे देशवासियों
का राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट ..........! सदा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा ......... !
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम् ..... !)